मंगलवार, 10 मार्च 2015

पूर्वावलोकन

         
                                                                      
          आमतौर पर लोकप्रिय राजनेताओं, प्रसिद्ध साहित्यकारों और समाजसेवियों द्वारा आत्मकथाएँ लिखी गई हैं। ये आत्मकथाएँ पाठकों के लिए प्रेरणास्रोत बनी लेकिन इस दुनियां में अधिकतर लोग सामान्य जीवन जीते हैं, बड़ी सफलता सबको हासिल नहीं होती। सफलता के लिए जिद चाहिए, मौके चाहिए, मौके का फायदा उठाने का हुनर चाहिए तब कहीं जाकर कोई सितारा ध्रुवतारा बनता है। सवाल यह है कि क्या किसी औसत व्यक्ति की जीवनकथा में वे तत्व नहीं होते जो सफल व्यक्तियों की कथा में होते हैं ?
          सफलता न सही, असफलता की कहानियाँ और उसके कारण हमें आत्मविश्लेषण का अवसर देते हैं और जीवन में चल रहे व्यक्तिगत संघर्ष में हो रही चूक की ओर इशारा करते हैं। मोहनदास करमचंद गांधी ने कहा था- ‘गल्तियाँ करके हम कुछ-न-कुछ सीखते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम गल्तियाँ करते रहें और कहें कि हम सीख रहे हैं।'
          आत्मकथा लिखना, नंगे हाथों से 440 वोल्ट का करंट छूने जैसा खतरनाक काम है। कथा सबकी होती है लेकिन जब उसे सार्वजनिक रूप दिया जाता है तो वह अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो जाती है। क्या बताएँ, क्या न बताएँ ? बताएँ तो किस तरह, छुपाएँ तो कैसे ? अतीत की घटनाओं का शब्दचित्रण, अपनी कमजोरियों और विशेषताओं का तटस्थ विवेचन, घटनाओं से जुड़े लोगों की निजता और भावनाओं का सम्मान- ऐसा कार्य है जैसे युद्धक्षेत्र में योद्धा अपने प्राण देने को तैयार हो लेकिन उसे सामने वाले के प्राण लेने में संकोच हो रहा हो।
          मुझे लगता है, आपको अपने जीवन में घटित सब कुछ बता दूं तब मेरे जी में जी आएगा ! यादें असीमित हैं, बताना बहुत कुछ है लेकिन सम्प्रेषण की बाधाएं है, शब्दों की विवशता भी है। मेरे सामने मुश्किल यह भी है कि मैंने जो आंसू बहाए हैं उन्हें आपको कैसे दिखाऊँ ? मैंने जो खुशियाँ पाई हैं उन्हें आपको कैसे महसूस कराऊँ ?
         यह आत्मकथा उन लोगों के लिए रौशनी की एक किरण बन सकती है जो अपनी जिन्दगी को खुशी से बिताना चाहते हैं, उसका मूल्य भी देना चाहते हैं लेकिन अपने आसपास के लोगों को समझा नहीं पा रहे हैं कि वे दरअसल क्या चाहते हैं ?
          आत्मकथा के प्रथम खंड 'कहाँ शुरू कहाँ खत्म' में मेरे बचपन से 33 वर्ष तक की उम्र की घटनाओं का समावेश था। इस द्वितीय खंड 'पल पल ये पल' में उसके बाद के 18 वर्षों की बातें हैं। मुझे उम्मीद है कि आप इस कालखंड की मेरी ज़िंदगी को पढ़कर एक आम मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार से जुड़े व्यापारी के दुख-सुख और उसकी मनस्थिति को सहज समझ पाएंगे।
          वैसे, किसी अनजाने से साधारण व्यक्ति की कथा से जुड़ने के आपके साहस और धैर्य को मैं प्रणाम कर रहा हूँ।  

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